नारायणगढ़ में मंगलवार को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), संयुक्त गन्ना किसान कमेटी और अखिल भारतीय किसान सभा की एक साझी बैठक हुई। इस बैठक में किसानों के विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई, जिसमें गन्ना किसानों के बकाया भुगतान, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी, और कृषि कानूनों को लेकर संघर्ष शामिल था।
बैठक में किसानों ने अपनी समस्याओं को प्रमुखता से उठाया और सरकार से उनकी मांगों को शीघ्र हल करने की अपील की। इस अवसर पर किसानों ने एकजुट होकर अपने हक की लड़ाई को और तेज करने का संकल्प लिया। किसान नेताओं ने कहा कि अगर सरकार ने जल्द ही उनकी समस्याओं का समाधान नहीं किया, तो वे आगे भी अपने आंदोलन को जारी रखेंगे।
इस बैठक में यह फैसला लिया गया कि तीनों संगठनों के कार्यकर्ता आगामी गणतंत्र दिवस पर केंद्र सरकार की वादा खिलाफी के विरोध में किसान परेड का आयोजन करेंगे। यह परेड सूर्या पैलेस से बस अड्डे होते हुए लोटन चुंगी और फिर अग्रसेन चौक तक जाएगी। परेड में किसानों के साथ-साथ मजदूर संगठन सीआईटीयू (सेंट्रल इंडस्ट्रियल ट्रेड यूनियन) भी भाग लेगा।
बैठक की अध्यक्षता निरमेल सिंह, गुरदेव सिंह और रमेश सैनी ने की। किसान नेताओं ने इस परेड के माध्यम से सरकार से अपनी मांगों को लेकर सशक्त संदेश देने का निर्णय लिया है, ताकि उनके अधिकारों और न्याय की लड़ाई को और तेज किया जा सके।
गणतंत्र दिवस पर होने वाली इस परेड के दौरान किसान और मजदूर एकजुट होकर अपने हक के लिए संघर्ष करेंगे और सरकार से वादों को पूरा करने की मांग करेंगे।
किसान नेता चमन गुज्जर और धनराज लखनौरा ने कहा कि चार साल पहले, भारतीय किसान यूनियन (एसकेएम) के संघर्ष के दबाव में केंद्र सरकार ने तीन काले कृषि कानूनों को वापस लेते हुए कई महत्वपूर्ण वादे किए थे। इनमें सी2 + 50 प्रतिशत फार्मूला के अनुसार सभी फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देने, किसानों और मजदूरों का पूरा कर्ज माफ करने और बिजली बिल को वापस लेने का वादा शामिल था।
लेकिन, अब केंद्र सरकार अपने वादों से मुकर गई है। किसान नेताओं ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार न केवल इन वादों को भूल गई है, बल्कि कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद, उन्हें चुपके से नई कृषि बाजार नीति के माध्यम से फिर से लागू करने की कोशिश कर रही है।
इस नई नीति में एमएसपी की कानूनी गारंटी का कोई जिक्र नहीं है, जो किसानों के लिए एक बड़ा धक्का है। इसके अलावा, इस नीति में ठेका फार्मिंग को बढ़ावा दिया गया है और प्राइवेट मंडियों और साइलो (अनाज भंडारण) के लिए दरवाजे खोलने की योजना है। यह बदलाव किसानों के लिए चिंता का कारण बन सकते हैं, क्योंकि इससे बड़े व्यापारी और कंपनियों को अधिक अधिकार मिल सकते हैं, जबकि छोटे किसान और मजदूर प्रभावित हो सकते हैं।
किसान नेताओं ने यह भी कहा कि सरकार की यह नई नीति केवल किसानों के हितों के खिलाफ है और इसका उद्देश्य कृषि क्षेत्र को कॉर्पोरेट नियंत्रण में लाना है, जिससे किसानों की स्थिति और खराब हो सकती है। इस संदर्भ में, किसानों ने अपनी एकजुटता दिखाते हुए सरकार से इन मुद्दों पर स्पष्ट जवाब देने और अपने वादों को पूरा करने की मांग की है।

