कपास, जिसे ‘सफेद सोना’ कहा जाता है, भारत की प्रमुख नकदी फसलों में से एक है। यह लाखों किसानों की आजीविका का आधार है और देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हालांकि, कपास की खेती कई चुनौतियों से घिरी है, जैसे खराब अंकुरण, कीट-रोग और जलवायु परिवर्तन। फिर भी, वैज्ञानिक और जैविक तकनीकों के जरिए किसान इन समस्याओं से निपटकर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आइए, कपास की खेती की चुनौतियों, समाधानों और संभावनाओं को समझें।
Cotton Farming in India: प्रस्तावना
भारत, विश्व के प्रमुख कपास उत्पादक देशों में से एक है। यहाँ की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा कृषि पर आधारित है और कपास इसकी महत्वपूर्ण नकदी फसलों में से एक है। देश के लाखों किसान इस फसल पर निर्भर हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में कपास की खेती अनेक कठिनाइयों और अस्थिरताओं से जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन, कीट प्रकोप, लागत में वृद्धि और लाभ में गिरावट ने किसानों को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। फिर भी, नवीन तकनीकों, सरकारी प्रयासों और कृषि विज्ञान की मदद से इस क्षेत्र में आशा की किरणें दिखाई देने लगी हैं।
भारत में कपास की खेती का संक्षिप्त इतिहास : History of Cotton farming in India
भारत में कपास की खेती का इतिहास हज़ारों वर्षों पुराना है। सिन्धु घाटी सभ्यता के समय से ही भारतवासी कपास उगाते आ रहे हैं। वर्तमान में महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और पंजाब देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। कपास की खेती खरीफ सीजन में होती है, जिसकी बुवाई जून-जुलाई में और कटाई अक्टूबर-जनवरी तक होती है।
प्रमुख चुनौतियाँ :
1. कीट प्रकोप और बीटी कपास का विफलताबीटी (Bt) कपास को 2002 में भारत में अपनाया गया था ताकि गुलाबी बॉलवर्म जैसे कीटों से बचाव हो सके। शुरुआती वर्षों में इसके अच्छे परिणाम मिले, लेकिन समय के साथ कीटों ने प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली। विशेषकर गुलाबी बॉलवर्म ने बीटी कपास को प्रभावित करना शुरू कर दिया, जिससे उत्पादन में भारी गिरावट आई।
2. जलवायु परिवर्तन और अनियमित मानसून
कपास एक ऐसी फसल है जिसे पर्याप्त मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है। परंतु, हाल के वर्षों में मानसून की अनिश्चितता और सूखा पड़ने की घटनाओं में वृद्धि ने किसानों को भारी नुकसान पहुंचाया है। कभी-कभी अत्यधिक बारिश से फसल सड़ जाती है, तो कभी सूखे के कारण बर्बाद हो जाती है।
3. उच्च लागत और कम लाभ
बीज, खाद, कीटनाशक, मजदूरी और सिंचाई की लागत में वृद्धि के कारण कपास की खेती महंगी होती जा रही है। लेकिन बाजार में उचित मूल्य न मिलने के कारण किसानों का मुनाफा बहुत कम हो गया है। कई बार समर्थन मूल्य (MSP) भी लागत से कम रहता है।
4. बिचौलियों का हस्तक्षेप
कपास किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता क्योंकि वे सीधे बाजार तक नहीं पहुँच पाते। बिचौलियों और निजी कंपनियों के ज़रिये फसल बेचना पड़ता है, जिससे उन्हें शोषण का सामना करना पड़ता है।
संभावित समाधान :
1. वैकल्पिक और कीट-प्रतिरोधक किस्मों का विकास
वैज्ञानिकों और कृषि विश्वविद्यालयों को चाहिए कि वे बीटी कपास के विकल्प के रूप में नई, कीट-प्रतिरोधक और जलवायु-लचीली किस्में विकसित करें। जैविक और परंपरागत किस्मों को भी बढ़ावा देना जरूरी है।
2. एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM)
किसानों को रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर न रहकर एकीकृत कीट प्रबंधन अपनाना चाहिए, जिसमें फसल चक्र, जैविक कीटनाशकों, फेरोमोन ट्रैप और प्राकृतिक शत्रुओं का उपयोग शामिल हो।
3. जल संरक्षण तकनीकों का इस्तेमाल
ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग, वर्षा जल संचयन जैसी तकनीकों को अपनाकर कपास उत्पादन को जलवायु-लचीला बनाया जा सकता है। इससे सिंचाई की लागत भी घटेगी और जल की बर्बादी रुकेगी।
4. सरकारी सहायता और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वे कपास किसानों के लिए विशेष पैकेज और योजनाएं लाएं। साथ ही, MSP को C2 फार्मूले के आधार पर तय किया जाए ताकि किसानों को उनकी लागत के ऊपर 50% लाभ सुनिश्चित हो।
5. डिजिटल मंडियों और सीधी बिक्री को बढ़ावा
ई-NAM जैसी डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से किसानों को सीधे खरीदारों से जोड़कर बिचौलियों की भूमिका को कम किया जा सकता है।
उज्ज्वल भविष्य की ओर :
कपास की खेती के सामने भले ही चुनौतियाँ हों, लेकिन तकनीकी नवाचार और सरकारी पहल से इसका भविष्य उज्ज्वल बन सकता है। भारत जैसे देश में जहां कपड़ा उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, वहाँ कपास की मांग कभी खत्म नहीं हो सकती। यदि किसानों को सशक्त बनाया जाए, तो कपास उत्पादन न केवल आर्थिक मजबूती देगा बल्कि ग्रामीण रोजगार भी सृजित करेगा।
- जैविक कपास का बढ़ता चलन देश-विदेश में किसानों को प्रीमियम कीमत दिला सकता है।
- फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन्स (FPOs) के ज़रिये किसान सामूहिक रूप से विपणन, भंडारण और मूल्य निर्धारण में अधिक ताकत हासिल कर सकते हैं।
- एग्री-टेक स्टार्टअप्स के सहयोग से किसानों को मौसम पूर्वानुमान, कीट पहचान, उपज मूल्यांकन जैसे डिजिटल टूल्स मिलने लगे हैं जो खेती को स्मार्ट और वैज्ञानिक बना रहे हैं।
निष्कर्ष :
कपास की खेती भारत की कृषि और आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ है। चुनौतियाँ चाहे जितनी भी हों, समाधान भी उतने ही प्रभावी हैं यदि उन्हें सही तरीके से लागू किया जाए। किसानों को सशक्त बनाकर, उन्हें वैज्ञानिक जानकारी से लैस करके और बाजार से सीधा जोड़कर हम कपास की खेती को फिर से लाभकारी बना सकते हैं। यह न केवल किसानों की जिंदगी बदल सकता है, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ जैसे अभियानों को भी नया आयाम दे सकता है।