मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में अब युवा भी रुचि दिखा रहे हैं. वहीं समस्तीपुर जिले के रहने वाले 24 वर्षीय आनंद कुमार मधुमक्खी पालन से पिछले चार सालों से जुड़े हुए हैं और 6 महीना में करीब डेढ़ से पौने दो लाख रुपए की कमाई कर रहे हैं. आनंद कुमार ITI की पढ़ाई किए हैं!
बिहार में मधुमक्खी पालन के जरिए कई युवक अपनी जिंदगी में मिठास भर रहे हैं. इसके साथ ही सूबे को शहद में आत्मनिर्भर बनाने का काम भी कर रहे हैं. इस आत्मनिर्भरता के पीछे वैसे युवकों का भी योगदान है, जो बड़े शहरों में नौकरी करने की जगह मधुमक्खी पालन कर रहे हैं. एक ऐसे ही 23 वर्षीय आईटीआई पास आनंद कुमार भी हैं, जो कि बिहार के समस्तीपुर जिले के रहने वाले हैं. इनका सपना सेना में जाकर देश की सेवा करने का था. लेकिन कुछ ऐसे हालात बनें कि ये आज मधुमक्खी पालन बिजनेस से जुड़ गए हैं.
बातचीत करते हुए आनंद कुमार कहते हैं कि किसी बड़े कंपनी में नौकरी करने की जगह खुद का बिजनेस करना बढ़िया है और इसी सोच ने सेना की तैयारी एवं आईटीआई की पढ़ाई करने के बाद भी मधुमक्खी पालन से जुड़कर 6 महीना में करीब डेढ़ से पौने दो लाख रुपए की कमाई कर रहा हूं. आनंद कुमार के पास मौजूदा वक्त में करीब ढाई सौ बॉक्स है. ये नवंबर से लेकर मई महीने तक देश के विभिन्न राज्यों में शहद इकट्ठा करने के लिए जाते हैं. इनके साथ करीब तीन से चार लोगों की एक टीम है. वहीं इनका कहना है कि इस साल मौसम की मार से शहद उत्पादन पर सीधा असर हुआ है.
मधुमक्खी पालन का व्यवसाय बड़े कंपनी में नौकरी करने से बढ़िया
करीब तीन राज्य में घूमने के बाद बिहार के कैमूर जिले के मोहनिया में शहद इकट्ठा करने के लिए आए. आनंद कुमार से बात करते हुए कहते हैं कि बारहवीं की पढ़ाई करने के दौरान सेना में जाने की तैयारी कर रहा था. उस कालखंड में सपनें बहुत बड़े थे. लेकिन इसी दौरान हाथ टूट गया. और सेना में जाने के सपने पर ग्रहण लग गया. आगे वह कहते हैं कि 2019 में आई.टी.आई किया. लेकिन किसी बड़ी कंपनी में 10 से 12 से हजार की नौकरी करने की जगह मधुमक्खी पालन के साथ जुड़ गया. यह कहते हैं कि इनके रिश्तेदार 8 साल से इसमें जुड़े हुए थे. उन्हीं से प्रशिक्षण लेने के बाद शहद उत्पादन से जुड़ा.
फरवरी महीने में तापमान बढ़ने से शहद उत्पादन पर सीधा असर
आनंद कुमार कहते हैं कि वह नवंबर महीने से लेकर मई महीना तक शहद इकट्ठा करने के लिए दूसरे राज्यों में जाते हैं. लेकिन पिछले दो साल से उत्पादन एवं दाम में कमी आई है. इस साल फरवरी महीने में तापमान बढ़ने से मधुमक्खियां अधिक धूप के कारण खेतों में कम गईं. एक मधुमक्खी लगभग तीन किलोमीटर दूर तक शहद इकट्ठा करने के लिए जाती है. लेकिन गर्मी होने के कारण सुबह 10 बजे तक और शाम को 4 बजे के बाद जाती थीं. आगे कहते हैं कि पिछले फरवरी महीना में जहां एक बॉक्स से तीन से चार राउंड से 4 से 5 किलो शहद निकल गया था. लेकिन इस साल मधुमक्खियों को खाने तक का शहद नहीं है. वहीं पूरे 6 महीने का भ्रमण करने के बाद 2022 में करीब 8 क्विंटल तक शहद इकट्ठा हुआ था. मगर इस साल अभी तक 2 क्विंटल शहद इकट्ठा हो पाया है.
मेहनत के हिसाब से नहीं मिल रहा दाम
आनंद कुमार के साथ रहने वाले 50 वर्षीय रामबाबू महतों कहते हैं कि नवंबर महीने से ही घर छोड़ देते हैं और करीब 6 महीना तक शहद इकट्ठा करने के लिए देश के विभिन्न राज्यों में भ्रमण करते हैं. नवंबर महीना में झारखंड जाते हैं, जहां वन तुलसी के पौधे से शहद इकट्ठा किया जाता है. दिसंबर महीने में यूपी के सीतापुर जिले से लिप्ट्स के पेड़ से मधुमक्खी फूलों का रस चूसकर शहद इकट्ठा होता है. जनवरी में मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिला के भिंड एवं बिहार के कैमूर जिले में फरवरी महीने में सरसों के फूल से शहद जमा किया जाता है. इसके साथ ही आखिरी में मार्च महीने में मुजफ्फरपुर में लीची के बागान में जाते हैं. आगे महतो कहते हैं कि पिछले कुछ साल से शहद का दाम कम हो रहा है. आज 50 से 60 रुपए प्रति किलो शहद बेचने को मजबूर हैं. वहीं पिछले साल 150 रुपए किलो शहद व्यापारियों को दिया गया था.
28 फरवरी को बिहार सरकार ने बजट पेश किया. वित्त मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि राज्य में बड़े स्तर पर किसान मधुमक्खी पालन से जुड़े हुए हैं. वहीं शहद से जुड़े किसानों के लिए बेहतर बाजार एवं प्रशिक्षण को लेकर सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित किया किया जाएगा.